3.5/5 रेटिंग
संदीप रेड्डी वांगा द्वारा निर्देशित, लिखित और एडिटेड 'एनिमल' इस साल सबसे ज्यादा चर्चित फ़िल्म में से एक है। 'एनिमल' ने पहले दिन लगभग 64 करोड़ की कमाई कर इस साल आई शाहरुख़ ख़ान की फ़िल्म 'पठान' को पीछे कर दूसरा स्थान हासिल कर लिया है। पहले स्थान पर शाहरुख़ की ही फ़िल्म 'जवान'है।
फ़िल्म के रिलीस होने से पहले से ही जनता दो हिस्सों में बट गई है। एक वो जो इस फ़िल्म में आक्रमकता को पसन्द कर रही है। दूसरी तरफ वो जो इसकी आलोचना कर रही है। सिनेमा का अनुभव लेने वाले दर्शक के नज़रिए से फ़िल्म में सकारात्मक और नकारात्मक दोनों ही पहलू हैं।
सकारात्मक की बात की जाए तो मूवी में रणबीर कपूर का अभिनय सबसे ख़ास बात है। रणबीर ने अपने करियर में बहुत सिनेमा किया है पर इस स्तर का अभिनय उनका सर्वश्रेष्ठ है। फ़िल्म में उनके सामने हर कोई फीका दिखता है। उन्होंने फ़िल्म में अलग-अलग समय मे अलग-अलग व्यक्तित्व को निभाया है। शुरुआती सीन में यंग बॉय या बाद में आक्रमक आदमी हो। उन्होंने हर सीन में अपने अभिनय द्वारा पर्दे पर न्याय किया है।
अनिल कपूर, रश्मिका मंदाना, बॉबी देओल, शक्ति कपूर आदि जितने भी अन्य कलाकार हैं, उन्होंने फ़िल्म में अपने किरदार को सही से समझा और निभाया है। हर कलाकार अपने स्तर पर बेहतरीन काम करता है।
दूसरा फ़िल्म के गाने और बैकग्राउंड स्कोर बेहद अच्छा है। फ़िल्म में गाने बिल्कुल फिट बैठते हैं। फ़िल्म में आप गानों को सुनो या एल्बम के तौर पर सुने, गाने बहुत सुन्दर लगेंगे। बैकग्राउंड स्कोर एक्शन को और निखार कर पर्दे पर उतरता है। जब-जब वो बजता है, तब आपको समझ जाना चाहिए कुछ एक्शन होने वाला है।
तीसरी सकारात्मक पक्ष इस फ़िल्म का एक्शन कोरियोग्राफी है। वांगा फ़िल्म में जो हिंसा दिखाना चाहते थे वो दिखाने में सफल रहे हैं। ट्रेलर में तो फ़िल्म का 10% भी एक्शन नहीं है। फ़िल्म शुरू से ले कर अंत तक एक्शन से भरी हुई है। इस का एक्शन आप को जगह से हिलने नहीं देगा।
चौथा और अंतिम सकारात्मक पहलू इस फ़िल्म का क्लाइमेक्स है। फ़िल्म का अंत काफी ज्यादा खतरनाक बनाया है, जोकि इसके अगले पार्ट की नींव भी रखता है। दर्शक एनिमल के अंत मे दूसरे पार्ट आने की बात करते नज़र आएंगे।
नकारात्मक पक्ष की बात करे तो सबसे पहले इसकी कहानी को ही ले लेते हैं। अगर फ़िल्म की कहानी आप ढूंढ रहे है तो वो केवल इतनी ही है कि 'एक अमीर परिवार है, जिसमें बाप अपने काम में इतना व्यस्त रहता है कि उसका बेटा क्रिमनल बन जाता है। उनके बीच मे टॉक्ससिक रिश्ता है। लेकिन बाप को कोई मारने की कोशिश करता है। और बस बेटा उसका बदला लेने की कोशिश में लग जाता है।' एकदम बेजान कहानी है। फ़िल्म को 'वन मैन शो' कहना गलत नहीं।
दूसरी नकारात्मक बात इसकी लम्बाई है। पहला हाफ फ़ास्ट होने के वजह से दूसरा हाफ काफी धीमा लगने लगेगा। तब जा कर फ़िल्म की 3 घंटे 21 मिनट की लम्बाई महसूस होगी। पहले हाफ में काफी सारा एक्शन देखने के बाद दूसरे हाफ में कहानी को बांधने की कोशिश करना व्यर्थ सा लगेगा।
तीसरा इसकी एडिटिंग है। एक दृश्य से दूसरे में जाते वक्त दर्शकों को समझने में टाइम लगेगा। कभी एक्शन चल रहा है फिर अचानक रोमांटिक दृश्य का आ जाना खटकेगा।
चौथा नकारात्मक पहलू कास्ट का सही से इस्तेमाल न कर पाना है। बॉबी देओल, रश्मिका मंदाना, शक्ति कपूर को फ़िल्म में बिल्कुल व्यर्थ किया है। इतने बेहतरीन कलाकारों को न सही से स्क्रीन टाइम मिला और न ही अच्छे डायलॉग।
कुल मिला कर देखा जाए तो फ़िल्म का मास सिनेमा के तौर पर लुफ्त उठा सकते हैं।
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