ओमप्रकाश वाल्मीकि के बारे में मैंने स्नातक के समय सुना था कि 'वो एक ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्होंने कम उम्र में ही 'जूठन' नाम से अपनी आत्मकथा लिख दी थी।' जब मैंने इन्हें पढ़ा था, तब मुझे बिल्कुल भी अनुमान नहीं था कि ये दलित के बारे में लिखते हैं। जैसा इन्होंने अपनी रचनाओं में लिखा है, वो समाज का दर्पण है।
बेशक इनकी अधिकतर रचनाएँ काल्पनिक हो, पर हर रचना में इन्होंने समाज के उस नाज़ुक विषय को छुआ है। जिसको देख तो हर व्यक्ति रहा है पर उस विषय पर खुल कर बात करने से हर कोई कतराता है। इस किताब में भी ऐसी ही 12 चुनिन्दा कहानियाँ हैं। जो दलित वर्ग के अलग-अलग पहलुओं को छूती और उसका विवरण करती हैं।
इन 12 कहानियाँ में से मेरी पसन्दीदा कहानी 'सलाम' है। 'सलाम' में तीन प्रसंग दिए गए हैं। पहला, जब दलित बारात में दूल्हे हरीश के साथ उसका दोस्त कमल उपाध्याय आता है, जिसको दलित समझ गाँव में चाय तक नहीं मिलती है। दूसरा, बारात में आए एक छोटे लड़के द्वारा मुसलमान के हाथों से बने भोजन को खाने से मना कर देना। और तीसरा, हरीश को गाँव की रस्म के मुताबिक़ जब सलाम के लिए जाना होता है तो हरीश के द्वारा मना किया जाना।
कहानियाँ सब एक से बढ़कर एक हैं। पर कहानियाँ में कुछ जगहों पर वर्तनी की थोड़ी बहुत गलतियाँ हैं, जिसका पता भी नहीं चलेगा। उम्मीद है कि राजकमल प्रकाशन आने वाले संस्करण में इन गलतियों को सुधार लेंगे। अगर पढ़ना चाहो तो इस किताब को एक बार ज़रूर पढ़ें।
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