किसी आम इन्सान को देश के राष्ट्रपति को आशीर्वाद देते देखा है? अगर नहीं! तो 2019 का वो पल याद कीजिए जब हमारे तत्काल राष्ट्रपति राम नाथ कोविंद को 107 साल की महिला ने पद्मश्री लेते वक़्त आशीर्वाद दे दिया। ये महिला वैसे तो बहुत आम हैं पर जो काम इन्होंने अपनी ज़िन्दगी में किए हैं, उसके लिए भारत ही नहीं पूरा विश्व इनका आभारी है।
वृक्ष माता के नाम से मशहूर सालूमरदा थिमक्का एक पर्यावरणविद् हैं। जिनका जन्म कर्नाटक के तुमकुर जिले के गुब्बी गाँव में 1910-1912 में हुआ। गरीबी और सुविधाओं के अभाव के कारण वो कभी पढ़ नहीं सकीं। उनके घरवालों ने उनकी शादी हुलिकल गाँव के बिककाला चिक्कय्या से कर दी। शादी के बाद जब उन्हें पता चला कि वो कभी माँ नहीं बन सकती तो वो पूरी तरह टूट गई और उन्होंने 40 की उम्र में आत्महत्या करने का फ़ैसला लिया।
ये वही समय था जहाँ से सालूमरदा की ज़िन्दगी पूरी तरह बदल गई। सालूमरदा के पति ने अपनी पत्नी को आत्महत्या के ख़्याल से दूर रखने के लिए उनका ध्यान पेड़-पौधों की तरफ़ मोड़ दिया। दोनों पति-पत्नी ने मिल कर हुलिकल और कुदुर में बरगद के पौधे लगाना शुरू कर दिया। पौधों को वो सड़क के दोनों तरफ़ लगते और हफ्ते में दो बार मिट्टी के मटकों में पानी भर उनकी सिंचाई भी करते। देखते-देखते उन्होंने 45 किमी की सड़क पर 8000 से भी ज़्यादा पड़े-पौधे लगा दिए, इनके अलावा 400 बरगद के भी पेड़ लगाए हैं।
सालूमरदा इन सभी पेड़-पौधों को अपना बच्चे मानती हैं। जिस कारण उन्हें वृक्ष माता का नाम मिला। उनके इस काम के वजह से गाँव के लोग उनके नाम के साथ थिमक्का जोड़ने लगे। थिमक्का का अर्थ है 'पेड़ों की पंक्ति'।
1991 में जब उनके पति का निधन हो गया तब भी वो इस काम को करती रही। उन्होंने कभी भी इस काम को मशहूर होने या पैसों के लिए नहीं किया। वो हमेशा से ही गरीब रही, उनको इन पड़े-पौधों में अपने बच्चे दिखे। उनकी कमाई केवल 500 रुपए थी जो उन्हें पेंशन में मिला करती थी। 1995 में जब एक बच्चे ने उन्हें बताया कि उनका फ़ोटो छपा है। तब जा कर उन्हें पता चला कि इस काम के लिए उन्हें लोग जानने लगे हैं।
सालूमरदा के काम को 2019 में भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया है। जो उनके काम को भारत सरकार द्वारा मान्यता देता है। साथ ही उन्हें 2020 में कर्नाटक के केन्द्रीय विश्वविद्यालय द्वारा डॉक्टरेट की उपाधि भी दी गई है। सालूमरदा के नाम पर अमेरिका में पर्यावरण संगठन भी है, जिसका नाम 'थिमक्काज़ रिसोर्सेज फ़ॉर एनवायर्नमेंटल एजुकेशन' है।
सालूमरदा थिमक्का बहुत से लोगों के लिए प्रेरणा हैं। उनकी कहानी बताते है कि महान काम करने के लिए इन्सान की उम्र मायने नहीं रखती है। केवल उसकी मेहनत और उद्देश्य मायने रखता है।
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