फ़िल्म मेडडॉक सुपरनेचुरल यूनिवर्स की स्त्री, स्त्री-2, भेड़िया, रूही के हॉरर-कॉमेडी यूनिवर्स में ही शामिल है। फ़िल्म की कहानी महाराष्ट्र के ब्रह्मराक्षस की दन्तकथा 'मुंज्या' पर आधारित है। जब किसी बच्चे के मुंडन के दस दिन के अन्दर उस बच्चे की मौत हो जाए और वो अपनी अतृप्त इच्छाओं के कारण भूत बन जाता है, तो उसे मुंज्या कहते हैं।
फ़िल्म में मुंज्या के क़िरदार को सीजीआई(CGI) से बनाया गया है जो क़ाबिल-ए-तारीफ़ है। मुंज्या वाक़िफ़ में डरावना भी लगता है। फ़िल्म की शुरुआत के 30 मिनट आपको हॉरर का फील ज़रूर देंगे। पर फिर पता नहीं फ़िल्म के निर्माता क्या करना चाहते है फ़िल्म एक दम से हल्की लगने लगती है। मुंज्या का किरदार भी डरावने से ज़्यादा बचकाना लगता है। और भूत भागने वाले गुरु(सत्यराज) का क़िरदार तो बेमतलब का है, साफ-साफ दिखता है कि फ़िल्म में कॉमेडी डालने के लिए उस क़िरदार को ऐसा बनाया गया है।
कहानी को थोड़ा और बेहतर बनाया जा सकता था। बिट्टू(अभय वर्मा) के बचपन को थोड़ा एक्स्प्लोर करना चाहिए था। बिट्टू और उसके पिता के रिश्ते को दर्शकों के सामने रखना चाहिए था। जब बिट्टू के पिता की मृत्यु की बात होती है तो ये कहीं साफ नहीं बताया गया कि मौत कैसे हुई। फ़िल्म की कास्ट अच्छी है पर निर्माता उनका सही से इस्तेमाल नहीं कर सकें।
बाकी बैकग्राउंड म्यूजिक, सिनेमेटोग्राफी की बात करे तो वो काफ़ी सही है। स्त्री-2 की तरह इसमें महिलाओं पर डबल मीनिंग जोक्स नहीं है। और कहानी कुछ सेंस बना रही है।फ़िल्म एक बार तो दिखी जा सकती है।🔥
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