शादी का सीजन चल रहा है। जहाँ देखो वहाँ शादी हो रही हैं और खुशी का माहौल है। पर इस खुशी के माहौल में सबसे ज्यादा परेशान दुल्हन का परिवार होता है। इसके काफी सारे कारण होते हैं, पर सबसे प्रमुख कारण दहेज है। वैसे तो भारत में दहेज लेना-देना 1961 में ही गैर-कानूनी हो गया था। फिर भी ये रिवाज़ वैसा ही चलते आ रहा है।
दहेज कोई नई चीज नहीं है, ये प्राचीन भारत से ही समाज में मौजूद है। राजा अपनी बेटी को शादी के समय अपनी जायदाद में से कुछ हिस्सा भेट स्वरूप देता था। समान अर्थ में देखे तो इसका अर्थ अब बदल गया है। शादी के समय दोनों पार्टी में से अगर कोई भी एक दूसरे को सम्पत्ति या पैसे भेट करता है, उसको दहेज कहाँ जाता है। ज्यादातर भारत में दुल्हन का परिवार दूल्हे के परिवार को दहेज देता है।
मिली (बदला हुआ नाम) 25 वर्ष की दिल्ली की निवासी है। 13 मार्च को उनकी शादी हुई है। शादी से वो बहुत खुश है। पर जब हमने उनके बड़े भाई मोहन (बदला हुआ नाम) से बात की तो वो बताते हैं कि उनकी बहन की शादी में उनका 22 लाख रूप खर्च हो गया है। ये राशि दहेज से अलग है। उन्होंने दहेज में 10 लाख रुपए, कुछ घर का सामान, और एक कार भेट की है। जब हमने पूछा कि भारत में भेज देना या लेना तो गैर-क़ानून है। तब वो बताते हैं, अगर वो दहेज नहीं देंगे तो उनकी बहन से शादी करने को कोई तैयार ही नहीं होता।
वर्ल्ड बैंक की रिपोर्ट के अनुसार 1960 से 2008 के बीच भारत में 40,000 शादी हुई है। और उनमें से 95% शादी में दहेज का लेन-देन हुआ है। जिसमें 3 लाख करोड़ की सम्पत्ति और पैसे का लेन-देन है। ये आँकड़ा बताता है कि भारत में शादी केवल दो परिवारों का मेल नहीं है, ये एक व्यापार है। जिसमें सम्पत्ति और पैसा होना ज़रूरी है।
दहेज के साथ घरेलू हिंसा सीधे रूप से जुड़ी हुई है। जब भी कोई दुल्हन शादी करके अपने पति के घर जाती है और पति को और दहेज चाहिए होता है तो वो दुल्हन पर दवाब डालता है। अगर दबाव से भी काम नहीं चलता तो उसके साथ हिंसा करता है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 2019 में भारत के अन्दर 13,000 देहज से सम्बन्धित केस दर्ज़ किए गए थे। इनमें से 7,100 केस में दुल्हन की हत्या हो गई या फिर उसने आत्महत्या कर ली। इसी रिपोर्ट के अनुसार भारत में रोज़ 20 औरतें दहेज के कारण घरेलू हिंसा का शिकार होती हैं। ये तो वो केस हैं जो दर्ज हो सके। पता नहीं कितने ही और ऐसे मामले होंगे जो कभी सामने ही नहीं आए।
भारत ने 1961 में ही दहेज निषेध अधिनियम बना भारत में दहेज के लेना-देना को गैर-क़ानूनी घोषित कर दिया था। अगर कोई भी दहेज लेता या देता मिलेगा तो उसको 5 साल की अधिकतम जेल या 15,000 रुपए का ज़ुर्मन या दोनों ही कि सज़ा मिलेगी। भारत में इस अधिनियम को आए 60 साल से ज्यादा हो गए है पर इससे ज्यादा कोई फर्क नहीं पड़ा। Statista की रिपोर्ट के अनुसार दहेज से सम्बन्धित 2010 में 8,391 महिलाओं की हत्या या आत्महत्या के मामले सामने आए थे तो 2022 में 6,450। देखा जाए तो इसमें केवल 2,000 के करीब मामले कम हुए हैं। जो 12 साल के हिसाब से बहुत कम है। इसी रिपोर्ट के अनुसार भारत में 2022 में 18 महिलाओं रोज़ दहेज के चलते मारी गई हैं। 2019 के तुलना में ये कोई ज्यादा बड़ा बदलाव नहीं है।
सीएनएन के आर्टिकल के मुताबिक भारत के दक्षिण पश्चिम हिस्से के केरल राज्य में रहने वाली विस्मया नायर जो अपनी शादी के 1 साल बाद ही अपने ससुराल के बाथरूम में मरी हुई पाई गई। पुलिस को जाँच के समय किसी पर भी शक नहीं हुआ। जब लड़की के परिवार वालों ने पुलिस को दहेज हत्या के मामले में केस दर्ज करवाया तब जा कर पुलिस ने इस पर सही से कार्यवाई की।
ये तो केवल एक उदाहरण है न जाने कितने ही और ऐसे उदाहरण मौजूद होंगे। इकनोमिक एंड डेमोग्राफिक सर्वे के अनुसार 1930 से 1999 में भारत में केवल दहेज के चलते 3 लाख करोड़ का लेन-देन हुआ है। ये सर्वे भारत के 17 राज्यों के आधार पर हुआ था।
इतनी सारी बात की हमने पर ये बात अभी तक नहीं समझ आई कि दहेज कितना लिया जाएगा इसका निर्धारण कैसे होता है। इसकी भी बहुत दिलचस्प प्रक्रिया है। बिहार और उत्तरप्रदेश जैसे राज्य में लड़का जितनी बड़ी नौकरी करना है उस हिसाब से दहेज के रेट होता है। अगर लड़का आईएएस है तो वो 50 लाख से 1 करोड़ तक दहेज मांगेगा। अगर कोई छोटी नौकरी है तो 15 से 20 लाख दहेज। और इसके ऊपर से कार, बाइक एयर घर का सामान अलग। साथ ही इन लोगों को लड़की पढ़ी लिखी भी चाहिए। अगर लड़की पढ़ी लिखी नहीं है तो उसकी शादी होने बहुत मुश्किल है।
ऋतु (बदला हुआ नाम) 27 वर्ष की है। जो बिहार के वैशाली जिले में रहती है। उसके पास बीएड की डिग्री है इसके बदवज़ूद उनके लिए जब लड़के वाले देखने आए तो उन्होंने 20 लाख दहेज की डिमाण्ड रखी। ऋतु के परिवार वालों ने जब इस पर मोल-भाव किया तो उन्होंने शादी करने से इनकार कर दिया। प्रीति (बदला हुआ नाम) 28 वर्ष की उत्तरप्रदेश के बदायूँ जिले की रहने वाली है। इनका परिवार पेशे से किसान परिवार है। ये परिवार दहेज के खिलाफ है और दहेज देने से मना करता है जिस कारण प्रीति की शादी नहीं हो पा रही है। पूरे गाँव में प्रीति ही बिना बिहाई सबसे बड़ी लड़की बची है।
इन दोनों मामले में शादी न हो पाने का दहेज ही सबसे पड़ा कारण है। पहले मामले में दहेज देने को तैयार है पर पैसा और चाहिए। दूसरे मामले में दहेज देने को तैयार ही नहीं है तो कोई लड़का लड़की को देखना ही नहीं चाहता। 1961 से अभी तक में भारत में कोई ज्यादा सुधार नहीं हुआ है।
हमने एक सर्वे किया जिसमें हमने लड़कियों से पता किया कि वो अपनी शादी के वक़्त क्या-क्या समान चाहती हैं। सर्वे का परिणाम था कि 90% लड़कियों को कुछ-न-कुछ चाहिए था। कोई कार तो कोई बाइक चाहती थी। समाज ने लड़कियों की कंडीशनिंग ही कुछ इस तरह कर दी है कि बचपन से उनके मन में डाल दिया जाता है वो दूसरे घर की अमानत है उसको शादी करके जाना है। और परिवार उसकी शादी के लिए पैसा और सम्पत्ति दोनों जुटाने लगता है।
जिस कारण लड़कियों के मन में भी अलग-अलग तरह की चीज़ों की इच्छा जाग जाती हैं। हमने सर्वे में पाया कि आज भी 90% लड़कियाँ केवल स्कूल और कॉलेज इसलिए जाती हैं, क्योंकि उनकी शादी एक अच्छे पढ़े-लिखे लड़के से हो सके। और लड़के भी एक अच्छी नौकरी इसलिए करना चाहते हैं, क्योंकि उनको दहेज अच्छा मिल सके। और परिवार भी लड़के की परवरिश, पढ़ना-लिखना सब इस आस में करता है कि दहेज में सब वसूल लिया जाएगा।
इस समस्या का हल कुछ लोग शिक्षा बताते हैं। पर जैसे कि हम पहले बता चुके हैं, लड़के पढ़-लिख दहेज लेने-देने और शादी करने के लिए ही रहे हैं। इसका समस्या का कोई तुरन्त हल नहीं है। दहेज को ख़त्म करने के लिए लोगों को सिविक सेंस होने की ज़रूरत है। जैसे आसानी से लोग कूड़ा फैलाना नहीं बंद करे सकेंगे। वैसे ही दहेज की समस्या है। ये सारी समस्या लोगों के मन में इस कदर घर कर गई हैं कि आसानी से जाने वाली नहीं है।
दहेज की समस्या को ख़त्म करने के लिए हमे मिल कर लोगों में व्यवहारिक जागरूकता लाने की ज़रूरत है। लोगों के व्यवहार में दहेज को मना करने की आदत होनी चाहिए। सबसे पहले घर के बड़ों को दहेज न लेने के लिए शिक्षित करना चाहिए, उसके बाद बच्चों को दहेज के कारण होने वाले परिणामों के बारे में व्यवहारिक शिक्षा देनी चाहिए।
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