प्रेम का संगम: ‘अमृता इमरोज़’की कहानी, उमा त्रिलोक की ज़ुबानी

मैंने हीर-राँझा का नाम बहुत सुना पर कभी पढ़ा या उनके बारे में जानने की जिज्ञासा नहीं हुई, मुझको अमृता-इमरोज़-साहिर इन तीन शख़्सियत ने प्यार के बहुत-से रंग दिखाए हैं। अमृता का अमृत सा व्यक्तित्व, इमरोज़ का अनजान सफ़र और साहिर का अनकहा प्रेम। साहिर और अमृता बेशक़ दो अलग प्रेम पंछी हैं पर अमृता और इमरोज़ कभी अलग नहीं हो सकते, जहाँ अमृता वहाँ इमरोज़ का होना अनिवार्य है और इमरोज़ तो हमेशा से ही अमृता के ही थे। अब इस किताब की बात करें तो उमा त्रिलोक वो लेखिका हैं जिन्होंने अमृता-इमरोज़ को बहुत क़रीब से जाना और समझा है। अमृता के अंतिम समय में इमरोज़ के अलावा जो लोग उनके साथ थे उनमें से एक उमा त्रिलोक भी हैं। किताब को उमा त्रिलोक ने बहुत ख़ूबसूरती से लिखा है। उन्होंने अमृता-इमरोज़ के साथ बिताए अपने लगभग हर पल को इस किताब के माध्यम से पाठकों तक पहुँचाया है। भाषा से लेकर कविता को दर्शाना और अमृता और इमरोज़ से हुए संवाद को पाठकों को बख़ूबी से परोसा गया है। पंजाबी कविता को उन्हीं शब्दों और भाव के साथ उनके हिन्दी अर्थ को भी उकेरा गया है। अगर आप अमृता-इमरोज़ को समझना या जानना चाह रहे तो ये किताब ज़रूर पढ़ें।

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