कूड़ा प्रबन्धन: दिल्ली की सबसे बड़ी चुनौती कैसे बन रही है?

विकास के बार मे जब भी चर्चा होती है तब हर देश को कुछ गिने-चुने पैमानों में देखा जाता है। जैसे जीडीपी, तकनीक और आधारभूत संरचना। पर इसी बीच कूड़े की समस्या को हर कोई नजरअंदाज कर देता है। कूड़ा पूरा विश्व में एक गम्भीर समस्या है। और हम जब भारत जैसे देश में इस समस्या पर नज़र डालते है तब यहाँ तो और बुरा हाल है। 

भारत के लगभग हर राज्य में एक नहीं 3 से 4 बड़े-बड़े कूड़े के पहाड़ मौजूद हैं। और ये दिन-ब-दिन बढ़ते ही जा रहे हैं। देखा जाए तो इसका प्रमुख कारण 'कचड़ा प्रबन्धन' न हो पाना है। भारत की राजधानी दिल्ली की बात की जाए तो यहाँ तो सबसे बुरा हाल है। एक तरफ प्रदूषण से यहाँ के लोगों की हालत खराब है तो दूसरी तरफ कूड़े ने लोगों की नाक में दम कर रखा है। बोला जाता है कि भारत के लोग जहाँ देखो वहाँ कूड़ा फैलाते रहते हैं। कोई भी कूड़ेदान का प्रयोग नहीं करता है। 

तुग़लकाबाद में कहीं

देखा जाए तो कचड़ा प्रबन्धन में कूड़ेदान की समस्या एक महत्त्वपूर्ण मुद्दा है। दिल्ली में अधिकतर जगहों पर कूड़ा फेंकने के लिए कूड़ेदान ही मौजूद नहीं हैं। दिल्ली की अलकनंदा मार्किट जिसमें सुबह से शाम तक बहुत चहल-पहल रहती है वहाँ केवल 4 ही सार्वजनिक कूड़ेदान हैं। 4 में से भी 2 नीले और 2 हरे। यहाँ के विक्रेताओं से जब बात की तब उन्होंने बताया कि मार्किट के पास में ही एक बड़ा कूड़ेदान है। और वहाँ की हालत बहुत ही खराब है। यहाँ कर्मचारी सुबह साफ कर के जाते हैं। और शाम तक इसकी हालात फिर खस्ता हो जाती है। 

अलकनंदा मार्किट से लगे डीडीए(दिल्ली डेवलपमेंट अथॉरटी) फ्लैट्स कालकाजी में रहने वाले प्रदीप(बदला हुआ नाम) बताते हैं कि डीडीए फ्लैट्स में 2019 में कुछ कूड़ेदान लगाए गए थे पर कुछ समय बाद ही यहाँ के कूड़ेदान गयाब हो गए। यहाँ के एक-दो पार्क के बाहर ही कूड़ेदान हैं। और वो भी ऐसी जगह छुपे हैं जहाँ लोग ढूंढने पर भी ढूंढ न सकें। लोगों की माने तो डीडीए फ्लैट्स में डीडीए फ्लैट्स कालकाजी सबसे बेहतर डीडीए फ्लैट्स माना जाता है। कहाँ जाता है यहाँ सबसे ज्यादा साफ-सफाई है। और बाकी किसी भी डीडीए फ्लैट्स से ज्यादा भेटर सुविधा हैं। इसके बावज़ूब भी यहाँ पर कूड़े की समस्या गम्भीर मामला है।

2016 में सड़क किनारे वाले विक्रेताओं के लिए दक्षिण दिल्ली नगर निगम (एसडीएमसी) ने 10,000 कूड़ेदान की व्यवस्ता की थी। जब हमने कुछ विक्रेताओं से इस बारे में बात की तो पता चला कि उनको इसकी जानकारी ही नहीं है। वो बताते हैं कि उनमें से कुछ लोगों को काम करते 12 साल हो गए है। पर उन लोगों को इस बारे में जानकर ही नहीं है। सरकार द्वारा प्रयास तो होते आएँ हैं। पर ये पप्रयास ज़रूरतमंद तक नहीं पहुँच पा रहे हैं।

डीडीए कालकाजी

कूड़ेदान की समस्या दिल्ली में 2008 सीरियल बम ब्लास्ट के बाद काफी बढ़ गई। इसका कारण 2008 में हुए बम ब्लास्ट रहे। 2008 में कुछ आतंकवादियों ने कूड़ेदान का प्रयोग कर बम ब्लास्ट किया था। उसके बाद से ही दिल्ली सरकार ने सड़क किनारे कूड़ेदान लगाना ही बंद कर दिया था। पर 2014 के बाद आम आदमी पार्टी की दिल्ली सरकार ने एक बार फिर कूड़ेदान लगाने पर ज़ोर दिया। और साथ ही उनकी निगरानी भी करना शुरू कर दिया।

पर इसके बावजूद भी कूड़ेदान तो लगाए गए पर उनकी निगरानी का काम अच्छे से नहीं हुआ। जितने भी कूड़ेदान लगाए गए थे वो दिल्ली की 3.3 करोड़ आबादी के लिए काफी नहीं थे। जो भी कूड़ेदान लगाए गए थे उनमें से अधिकतर कुछ हफ्तों में ही गयाब हो गए या टूटी हुई हालात में मिले। और अधिकतर जगहों पर सरकार ने उन्हें वैसा ही छोड़ दिया।

नोएडा हाईवे

जब हम दिल्ली से नोएडा जाने वाले नेशनल हाईवे गए तो पाया कि यहाँ पर जगह-जगह लोगों ने खाना खा कर कूड़ा कर रखा है। एक 'बोम्बे चौपाटी' वाला आइस-क्रीम और फालूदा बैच रहा था उसके पास कूड़ेदान मौजूद होने के बावजूद भी लोग रास्ते में कूड़ा फेक रहे थे। बोम्बे चौपाटी वाला बताता है कि जब हम बोलते हैं कूड़ा कूड़ेदान में डालो। तो लोग हमारी बात नहीं मानते और इधर-उधर कूड़ा फैला देते हैं। साथ ही हाईवे के नीचे से जो यमुना बहती है उसमें भी लोगों ने काफी कूड़ा फैका हुआ था।

जब हमने कुछ पढ़े-लिखे लोगों से पूछा कि आप कूड़ा रास्ते में क्यों फैक रहे हैं। तो उनका कहना था कि जैसा सब करते हैं वही हम कर रहे हैं। ये जवाब सुन कर समझ आया कि लोगों में कूड़े को ले कर सहजता नहीं है। जब हमने उनको बताया कि ये कूड़ा नील कूड़ेदान में डाल जाना चाहिए। तब उन्होंने बताया कि उनको नीला और हरे कूड़ेदान का मतलब आज तक समझ नहीं आया। फिर हमने उन्हें बताया कि नीला कूड़ेदान सूखे कूड़े के लिए होता है और हरा गीले कूड़े के लिए जो ज्यादातर घर की रसोई में होना चाहिए।

भारत के नागरिक को कूड़े से सम्बन्धित बुनियादी जागरूकता नहीं होना भी सरकार की विफलता है। केन्द्र सरकार द्वारा पूरे भारत में स्वच्छ भारत मिशन चलाने के बावजूद भी लोगों में जागरूकता नहीं आ रही। मिशन तो बहुत धूमधाम से चल रहा है। पर उसका लोगों की सोच पर कितना प्रभाव पड़ा। इसकी या तो सरकार को जानकर नहीं और अगर जानकारी है भी तो सरकार जान कर इसको नजरअंदाज कर रही है।

दिल्ली गेट

कूड़े की समस्या को देखते हुए भारत सरकार ने 2018 में रेटिंग व्यवस्ता शुरू की, जिससे भारत के शहरों को साफ-सुथरा बनाया जा सके। इसमें साफ राज्य को भारत सरकार रेट करती है। 2018 में आवास और शहरी कार्य मंत्रालय ने स्वच्छ भारत मिशन की कार्यशाला में रेटिंग व्यवस्था शुरू की। जिसे स्वच्छ सर्वेक्षण रैंकिंग कहाँ गया। इसमें कचड़ा प्रबन्धन, साफ-सफाई और खुले में शौच के आधार पर राज्य को रेट नहीं किया जाएगा। बल्की राज्य को उनके प्रेदर्शन के आधार पर रेट किया जाएगा। राज्य ने साल भर में क्या काम किया। 2023 की स्वच्छ सर्वेक्षण रेटिंग रिपोर्ट में एक लाख से ज्यादा आबादी वाले शहर में सातवी बार इंदौर पहले नम्बर पर रहा। सूरत को भी इंदौर के साथ संयुक्त रूप से पहला स्थान मिला है। महाराष्ट्र का नवीं मुम्बई तीसरे, आंध्र प्रदेश का विशाखापट्टनम चौथे और मध्य प्रदेश का भोपाल पाँचवे स्थान पर है।

दिल्ली सरकार ने इस राह में 'डोर-टू-डोर कॉलेशन' शुरू किया है। जिसमें एमसीडी की कूड़े की गाड़ी गली में आती है और हर घर से कूड़ा इकट्ठा कर ले जाते हैं। और पास के बड़े कूड़ेदान में जमा कर देती है। जब हमने कूड़े के गाड़ी में काम करने वाले राकेश से बात कि। तब वो बताता है कि “गली के लोग हमें कूड़ा ऐसे ही देते हैं। हमें घर से जो कूड़ा मिलता है उनको लोग अलग नहीं करते हैं। हमें खुद सूखा और गिला कूड़ा अलग करने में बहुत परेशान होती है। जिस वजह से हमारा काम दो से तीन गुणा बाद जाता है। और काफी बार हमें चोट भी लग जाती है। अगर लोग सूखा और गिला कूड़ा अलग कर के दें तो हमे आसानी होगी। और कूड़ा प्रबंधन में भी आसानी होगी। वैसे जो कॉलोनी से कूड़ा आता है उसमें लोग अलग-अलग कर के कूड़ा देता हैं।”

दिल्ली में कूड़े की समस्या को दूर करने के लिए 'ज़ीरो वेस्ट कॉलोनी' बनाई है। एनडीटीवी की एक रिपोर्ट के हिसाब 'ज़ीरो वेस्ट कॉलोनी' में 30 से ज्यादा कॉलोनी आ गई हैं। इसमें कॉलोनी के लोग सूखा और गिला कूड़े अलग कर के कूड़े में डालते हैं। इसके लिए वहाँ लोग कार्यशाला भी करते हैं। डेढ़ साल में इसमें 2000 कॉलोनी को लाने का लक्ष्य रखा है। कॉलोनी काम कर रही है कि नहीं इसकी पुष्टि राकेश के बयान से हो जाती है। जब राकेश बताते हैं कि कॉलोनी में लोग अलग-अलग कर के कूड़ा देते हैं। तो वो कॉलोनी ज़ीरो वेस्ट कॉलोनी के अन्दर आती हैं।

यमुना नदी

एनडीटीवी ने आरटीआई कर कितने बस स्टॉप पर कूड़ेदान है कि जानकारी इकट्ठा करना चाहा तो उसकी जानकर सरकार के पास ही नहीं है। जब हमने फील्ड पर जा बस स्टॉप की जाँच की तो पाया जो अच्छे इलाके हैं उनके ही बस स्टॉप ओर कूड़ेदान मौजूद हैं। छोटे-मोटे बस स्टॉप पर कूड़े को फैकने की कोई व्यवस्था ही नहीं है। लोगों ने कूड़ा स्टॉप के पीछे और साइड में फैक रखा था। जो बस स्टॉप की भी हालात खराब कर देता है।

2023 की सॉलिड वेस्ट मोनिटरिंग कमिटी की रिपोर्ट के अनुसार 1150 टन रोज़ का कचड़ा दिल्ली के कूड़ेदान में आता है। और उनमें से 846 टन कचड़े को ही रीसायकेल कर पाते हैं। बाकी का कूड़ा कचड़े के पहाड़ में जुड़ता जाता है। 

दिल्ली में सरकार ने कचड़ा प्रबन्धन पर काफी काम किया है। पर जितना भी किया है वो कम है। दिल्ली में 3.3 करोड़ लोगों के लिए लगातार काम करना पड़ेगा, जो दिल्ली सरकार ने अभी तक नहीं किया है। उन्होंने कचड़े के लिए व्यवस्था तो की पर उस ओर लगतार निगरानी नहीं रखी, जिस कारण सारे किए कराए काम पर पानी फिर रहा है। भारत सरकार को ओर सहजता के साथ और ध्यान देने की ज़रूरत है।

Write a comment ...

Write a comment ...